हेट्ठिमछप्पुढवीणं, जोइसिवणभवणसव्वइत्थीणं।
पुण्णिदरे ण हि सम्मो, ण सासणो णारयापुण्णे॥128॥
अन्वयार्थ : द्वितीयादिक छह नरक और ज्योतिषी व्यन्तर भवनवासी ये तीन प्रकार के देव तथा सम्पूर्ण स्त्रियाँ इनको अपर्याप्त अवस्था में सम्य्नत्व नहीं होता है। और नारकियों के निर्वत्त्यपर्याप्त अवस्था में सासादन गुणस्थान नहीं होता ॥128॥

  जीवतत्त्वप्रदीपिका