
वीरियजुदमदिखउवसमुत्था णोइंदियेंदियेसु बला।
देहुदये कायाणा, वचीबला आउ आउदये॥131॥
अन्वयार्थ : मनोबल प्राण और इन्द्रिय प्राण वीर्यान्तराय कर्म और मतिज्ञानावरण कर्म के क्षयोपशमरूप अन्तरंग कारण से उत्पन्न होते हैं। शरीरनामकर्म के उदय से कायबलप्राण होता है। श्वासोच्छ्वास और शरीरनामकर्म के उदय से प्राण-श्वासोच्छ्वास उत्पन्न होते हैं। स्वरनामकर्म के साथ शरीर नामकर्म का उदय होने पर वचनबल प्राण होता है। आयु कर्म के उदय से आयु प्राण होता है ॥131॥
जीवतत्त्वप्रदीपिका