इंदियकायाऊणि य, पुण्णापुण्णेसु पुण्णगे आणा।
बीइंदियादिपुण्णे, वचीमणो सण्णिपुण्णेव॥132॥
अन्वयार्थ : इन्द्रिय, काय, आयु ये तीन प्राण, पर्याप्त और अपर्याप्त दोनों ही के होते हैं। किन्तु श्वासोच्छ्वास पर्याप्त के ही होता है। और वचनबल प्राण पर्याप्त द्वीन्द्रियादि के ही होता है तथा मनोबल प्राण संज्ञीपर्याप्त के ही होता है ॥132॥

  जीवतत्त्वप्रदीपिका