णट्ठपमाए पढमा, सण्णा ण हि तत्थ कारणाभावा।
सेसा कम्मत्थित्तेणवयारेणत्थि ण हि कज्जे॥139॥
अन्वयार्थ : अप्रमत्त आदि गुणस्थानों में आहारसंज्ञा नहीं होती्नयोंकि वहाँ पर उसका कारण असाता वेदनीय का तीव्र उदय या उदीरणा नहीं पाई जाती। शेष तीन संज्ञाएँ भी वहाँ पर उपचार से ही होती हैं्नयोंकि उनका कारण तत्तत्कर्मों का उदय वहाँ पर पाया जाता है ङ्किर भी उनका वहाँ पर कार्य नहीं हुआ करता ॥139॥

  जीवतत्त्वप्रदीपिका