धम्मगुणमग्गणाहयमोहारिबलं जिणं णमंसित्ता।
मग्गणमहाहियारं, विविहहियारं भणिस्सामो॥140॥
अन्वयार्थ : सम्यग्दर्शनादि अथवा उत्तम क्षमादि धर्मरूपी धनुष और ज्ञानादि गुणरूपी प्रत्यंचा-डोरी, तथा चौदह मार्गणारूपी बाणों से जिसने मोहरूपी शत्रु के बल-सैन्य को नष्ट कर दिया है ऐसे श्री जिनेन्द्रदेव को नमस्कार करके मैं उस मार्गणा महाधिकार का वर्णन करूँगा जिसमें कि और भी विविध अधिकारों का अन्तर्भाव पाया जाता है ॥140॥

  जीवतत्त्वप्रदीपिका