जाहि व जासु व जीवा, मग्गिज्जंते जहा तहा दिट्ठा।
ताओ चोदस जाणे सुयणाणे मग्गणा होंति॥141॥
अन्वयार्थ : प्रवचन में जिस प्रकार से देखे हों उसी प्रकार से जीवादि पदार्थों का जिन भावों के द्वारा अथवा जिन पर्यायों में विचार-अन्वेषण किया जाय उनको ही मार्गणा कहते हैं, उनके चौदह भेद हैं ऐसा समझना चाहिये ॥141॥

  जीवतत्त्वप्रदीपिका