गइउदयजपज्जाया चउगइगमणस्स हेउ वा हु गई।
णारयतिर्निखमाणुसदेवगइ त्ति य हवे चदुधा॥146॥
अन्वयार्थ : गतिनामकर्म के उदय से होने वाली जीव की पर्याय को अथवा चारों गतियों में गमन करने के कारण को गति कहते हैं । उसके चार भेद हैं -- नरकगति, तिर्यंचगति, मनुष्यगति और देवगति ॥146॥

  जीवतत्त्वप्रदीपिका