तिण्णिसयजोयणाणं, वेसदछप्पण्ण अंगुलाणं च।
कदिहदपदरं वेंतर, जोइसियाणं च परिमाणं॥160॥
अन्वयार्थ : तीन सौ योजन के वर्ग का जगतप्रतर में भाग देने से जो लब्ध आवे उतना व्यन्तर देवों का प्रमाण है और 256 प्रमाणांगुलों के वर्ग का जगतप्रतर में भाग देने से जो लब्ध आवे उतना ज्योतिषियों का प्रमाण है ॥160॥

  जीवतत्त्वप्रदीपिका