घणअंगुलपढमपदं, तदियपदं सेढिसंगुणं कमसो।
भवणे सोहम्मदुगे, देवाणं होदि परिमाणं॥161॥
अन्वयार्थ : जगच्छ्रेणी के साथ घनांगुल के प्रथम वर्गमूल का गुणा करने से भवनवासी और तृतीय वर्गमूल का गुणा करने से सौधर्मद्विक-सौधर्म और ऐशान स्वर्ग के देवों का प्रमाण निकलता है ॥161॥

  जीवतत्त्वप्रदीपिका