तत्तो एगारणवसगपणचउणियमूलभाजिदा सेढी।
पल्लासंखेज्जदिमा, पत्तेयं आणदादिसुरा॥162॥
अन्वयार्थ : इसके अनंतर अपने (जगच्छ्रेणी के) ग्यारहवें नववें सातवें पांचवें चौथे वर्गमूल से भाजित जगच्छ्रेणी प्रमाण तीसरे कल्प से लेकर बारहवें कल्प तक के देवों का प्रमाण है। आनतादिक में आगे के देवों का प्रमाण पल्य के असंख्यातवें भाग प्रमाण है ॥162॥

  जीवतत्त्वप्रदीपिका