
धणुवीसडदसयकदी, जोयणछादालहीणतिसहस्सा।
अट्ठसहस्स धणूणं, विसया दुगुणा असण्णि त्ति॥168॥
अन्वयार्थ : एकेन्द्रिय के स्पर्शन, द्वीन्द्रिय के रसना एवं त्रीन्द्रिय के घ्राण का उत्कृष्ट विषयक्षेत्र क्रम से चार सौ धनुष, चौसठ धनुष, सौ धनुष प्रमाण है। चतुरिन्द्रिय के चक्षु का उत्कृष्ट विषयक्षेत्र दो हजार नव सौ चौवन योजन है। और आगे असंज्ञीपर्यन्त विषयक्षेत्र दना-दना बढ़ता गया है। असैनी के श्रोत्रेन्द्रिय का उत्कृष्ट विषयक्षेत्र आठ हजार धनुष प्रमाण है ॥168॥
जीवतत्त्वप्रदीपिका