
तहिं सेसदेवणारयमिस्सजुदे सव्वमिस्सवेगुव्वं।
सुरणिरयकायजोगा, वेगुव्वियकायजोगा हु॥169॥
अन्वयार्थ : वैक्रियिकमिश्रकाययोग के धारक उक्त व्यन्तरों के प्रमाण में शेष भवनवासी, ज्योतिषी, वैमानिक और नारकियों के मिश्रकाययोगवालों का प्रमाण मिलाने से सम्पूर्ण वैक्रियिक मिश्र काययोगवालों का प्रमाण होता है और देव तथा नारकियों के काययोगवालों का प्रमाण मिलने से समस्त वैक्रियिक काययोगवालों का प्रमाण होता है ॥169॥
जीवतत्त्वप्रदीपिका