
चक्खूसोदं घाणं, जिब्भायारं मसूरजवणाली।
अतिमुत्तखुरप्पसमं, फासं तु अणेयसंठाणं॥171॥
अन्वयार्थ : मसूर के समान चक्षु का, जव की नाली के समान श्रोत्र का, तिल के ङ्कूल के समान घ्राण का तथा खुरपा के समान जिह्वा का आकार है और स्पर्शनेन्द्रिय के अनेक आकार हैं ॥171॥
जीवतत्त्वप्रदीपिका