अंगुलअसंखभागं, संखज्जगुणं तदो विसेसहियं।
तत्तो असंखगुणिदं, अंगुलसंखेज्जयं तत्तु॥172॥
अन्वयार्थ : आत्मप्रदेशों की अपेक्षा चक्षुरिन्द्रिय का अवगाहन घनांगुल के असंख्यातवें भागप्रमाण है और इससे संख्यातगुणा श्रोत्रेन्द्रिय का अवगाहन है। श्रोत्रेन्द्रिय से पल्य के असंख्यातवें भाग अधिक घ्राणेन्द्रिय का अवगाहन है। घ्राणेन्द्रिय से पल्य के असंख्यातवें भाग गुणा रसनेन्द्रिय का अवगाहन हैं जो घनांगुल के संख्यातवें भागमात्र है ॥172॥

  जीवतत्त्वप्रदीपिका