
बहुभागे समभागो चउण्णमेदेसिमेक्कभागम्हि।
उत्तकमो तत्थ वि,बहुभागो बहुगस्स देओ दु॥179॥
अन्वयार्थ : त्रसराशि में आवली के असंख्यातवें भाग का भाग देकर लब्ध बहुभाग के समान चार भाग करना और एक एक भाग को द्वीन्द्रियादि चारों ही में विभक्त कर, शेष एक भाग में ङ्किर से आवली के असंख्यातवें भाग का भाग देना चाहिये और लब्ध बहुभाग को बहुत संख्यावाले को देना चाहिये। इसप्रकार अंतपर्यंत करना चाहिये॥179॥
जीवतत्त्वप्रदीपिका