
पुढवी आऊ तेऊ, वाऊ कम्मोदयेण तत्थेव।
णियवण्णचउक्कजुदो, ताणं देहो हवे णियमा॥182॥
अन्वयार्थ : पृथिवी, अप्-जल, तेज-अग्नि, वायु इनका शरीर नियम से अपने-अपने पृथिवी आदि नामकर्म के उदय से, अपने-अपने योग्य रूप, रस, गन्ध, स्पर्श से युक्त पृथिवी आदिक में बनता है ॥182॥
जीवतत्त्वप्रदीपिका