
एगणिगोदसरीरे, जीवा दव्वप्पमाणदो दिट्ठा।
सिद्घेहिं अणंतगुणा, सव्वेण विदीदकालेण॥196॥
अन्वयार्थ : समस्त सिद्धराशि का और सम्पूर्ण अतीत काल के समयों का जितना प्रमाण है द्रव्य की अपेक्षा से उनसे अनंतगुणे जीव एक निगोदशरीर में रहते हैं ॥196॥
जीवतत्त्वप्रदीपिका