अत्थि अणंता जीवा, जेहिं ण पत्तो तसाण परिणामो।
भावकलंकसुपउरा, णिगोदवासं ण मुंचंति॥197॥
अन्वयार्थ : ऐसे अनंतानन्त जीव हैं कि जिन्होंने त्रसों की पर्याय अभी तक कभी भी नहीं पाई है और जो निगोद अवस्था में होने वाल दुर्लेश्यारूप परिणामों से अत्यन्त अभिभूत रहने के कारण निगादस्थान को कभी नहीं छोड़ते ॥197॥

  जीवतत्त्वप्रदीपिका