विहि तिहि चहुहिं पंचहिं, सहिया जे इंदिएहिं लोयम्हि।
ते तसकाया जीवा, णेया वीरोवदेसेण॥198॥
अन्वयार्थ : जो जीव दो, तीन, चार, पाँच इन्द्रियों से युक्त हैं उनको वीर भगवान के उपदेशानुसार त्रसकाय समझना चाहिये ॥198॥

  जीवतत्त्वप्रदीपिका