उववादमारणंतिय, परिणदतसमुज्झिऊण सेसतसा।
तसणालिबाहिरम्हि य, णत्थि त्ति जिणेहिं णिद्दिट्ठं॥199॥
अन्वयार्थ : उपपाद जन्मवाले और मारणान्तिक समुद्घातवाले त्रस जीवों को छोड़कर बाकी के त्रस जीव त्रसनाली के बाहर नहीं रहते यह जिनेन्द्रदेव ने कहा है ॥199॥

  जीवतत्त्वप्रदीपिका