पुढवीआदिचउण्हं, केवलिआहारदेवणिरयंगा।
अपदिट्ठिदा णिगोदेहिं, पदिट्ठिदंगा हवे सेसा॥200॥
अन्वयार्थ : पृथिवी, जल, अग्नि और वायुकायिक जीवों का शरीर तथा केवलियों का शरीर, आहारकशरीर और देव-नारकियों का शरीर बादर निगोदिया जीवों से अप्रतिष्ठित है। शेष वनस्पतिकाय के जीवों का शरीर तथा द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, पंचेन्द्रिय तिर्यंच और मनुष्यों का शरीर निगोदिया जीवों से प्रतिष्ठित है ॥200॥

  जीवतत्त्वप्रदीपिका