अपदिट्ठिदपत्तेया, असंखलोगप्पमाणया होंति।
तत्तो पदिट्ठिदा पुण, असंखलोगेण संगुणिदा॥205॥
अन्वयार्थ : अप्रतिष्ठित प्रत्येक वनस्पतिकायिक जीव असंख्यात लोकप्रमाण हैं, और इससे भी असंख्यात लोकगुणा प्रतिष्ठित प्रत्येक वनस्पतिकायिक जीवों का प्रमाण है ॥205॥

  जीवतत्त्वप्रदीपिका