पल्लासंखेज्जवहिद, पदरंगुलभाजिदे जगप्पदरे।
जलभूणिपबादरया पुण्णा आवलि असंखभजिदकमा॥209॥
अन्वयार्थ : बादर जलकायिक जीव जगतप्रतर भाजित पल्य के असंख्यातवें भाग से भक्त प्रतरांगुल प्रमाण हैैं। इसमें उत्तरोत्तर आवली के असंख्यातवें भाग-आवली के असंख्यातवें भाग का भाग देने पर क्रमश: बादर पर्याप्त पृथिवीकायिक, सप्रतिष्ठित प्रत्येक पर्याप्त एवं अप्रतिष्ठित प्रत्येक पर्याप्त जीवों का प्रमाण प्राप्त होता हैैं ॥209॥

  जीवतत्त्वप्रदीपिका