विंदावलिलोगाणमसंखं संखं च तेउवाऊणं।
पज्जत्ताण पमाणं, तेहिं विहीणा अपज्जत्ता॥210॥
अन्वयार्थ : घनावलि के असंख्यात भागों में से एक भागप्रमाण बादर पर्याप्त तेजस्कायिक जीवों का प्रमाण है और लोक के संख्यात भागों में से एक भागप्रमाण बादर पर्याप्त वायुकायिक जीवों का प्रमाण है। अपनी-अपनी सम्पूर्ण राशि में से पर्याप्तकों का प्रमाण घटाने पर जो शेष रहे वही अपर्याप्तकों का प्रमाण है ॥210॥

  जीवतत्त्वप्रदीपिका