आवलिअसंखभागेणवहिदपल्लूणसायरद्धछिदा।
बादरतेपणिभूजलवादाणं चरिमसागरं पुण्णं॥213॥
अन्वयार्थ : आवली के असंख्यातवें भाग से भक्त पल्य को सागर में से घटाने पर जो शेष रहे उतने बादर तेजस्कायिक जीवों के अर्धच्छेद हैं और अप्रतिष्ठित प्रत्येक, प्रतिष्ठित प्रत्येक, बादर पृथ्वीकायिक, बादर जलकायिक जीवों के अर्धच्छेदों का प्रमाण क्रम से आवली के असंख्यातवें में भाग का दो बार, तीन बार, चार बार, पाँच बार पल्य में भाग देने से जो लब्ध आवे उसको सागर में घटाने से निकलता है और बादर वातकायिक जीवों के अर्धच्छेद पूर्ण सागर प्रमाण है ॥213॥

  जीवतत्त्वप्रदीपिका