
सब्भावमणो सच्चो, जो जोगो तेण सच्चमणजोगो।
तव्विवरोओ मोसो, जाणुभयं सच्चमोसो त्ति॥218॥
अन्वयार्थ : समीचीन भावमन को अर्थात् समीचीन पदार्थ को विषय करने वाले मन को सत्यमन कहते हैं, और उसके द्वारा जो योग होता है उसको सत्यमनोयोग कहते हैं। सत्य से जो विपरीत है उसको मिथ्या कहते हैं तथा सत्य और मिथ्या दोनों ही प्रकार के मन को उभय मन कहते हैं। ऐसा हे भव्य! तू जान ॥218॥
जीवतत्त्वप्रदीपिका