+ जीव का कर्म ग्रहण -
देहोदयेण सहिओ, जीवो आहरदि कम्म णोकम्मं ।
पडिसमयं सव्‍वंगं, तत्तायसपिंडओव्‍व जलं ॥3॥
अन्वयार्थ : [देहोदयेण सहिओ] कार्मण शरीर नामकर्म के उदय से, [कम्म णोकम्मं] कर्म और नोकर्म को [पडिसमयं सव्‍वंगं] प्रति-समय, सर्व प्रदेशों से [जीवो आहरदि] जीव ग्रहण करता है, [तत्तायसपिंडओव्‍व जलं] जैसे तप्तायमान लोहा जल को सब ओर से खींचता है ॥३॥