सिद्धाणंतिमभागं, अभव्वसिद्धादणंतगुणमेव ।
समयपबद्धं बंधदि, जोगवसादो दु विसरित्थं ॥4॥
अन्वयार्थ : यह आत्मा, सिद्धजीवराशि के अनंतवें भाग और अभव्य जीवराशि से अनंतगुणे समयप्रबद्ध (एक समय में बंधने वाले परमाणुसमूह) को बांधता है । इतनी विशेषता है कि मन, वचन, काय की प्रवृत्तिरूप योगों की विशेषता से (कमती बढ़ती होने से) कभी थोड़े और कभी बहत परमाणुओं का भी बंध करता है ।