आउबलेण अवट्ठिदि, भवस्स इदि णाममाउपुव्‍वं तु ।
भवमस्सिय णीचुच्‍चं, इदि गोदं णामपुव्‍वं तु ॥18॥
अन्वयार्थ : [आउबलेण अवट्ठिदि] आयु के बल से भव की अवस्थिति होती है, [भवस्स इदि णाममाउपुव्‍वं तु] भव होने पर ही शरीर वा चतुर्गतिरूप स्थिति होती है [भवमस्सिय णीचुच्‍चं] भव का आश्रय करके नीच-उच्‍चपना होता है [इदि गोदं णामपुव्‍वं तु] इसलिए नाम के पश्‍चात् गोत्र कर्म कहा ॥१८॥