घादिंव वेयणीयं, मोहस्स बलेण घाददे जीवं ।
इदि घादीणं मज्झे, मोहस्सादिम्हि पढिदं तु ॥19॥
अन्वयार्थ : [घादिंव वेयणीयं] घातिया कर्मवत् वेदनीय कर्म [मोहस्स बलेण घाददे जीवं] मोह के बल से जीव का घात करता है [इदि घादीणं मज्झे] इसलिए घातिया कर्मों के बीच [मोहस्सादिम्हि पढिदं तु] मोह कर्म के पहले वेदनीय को कहा है ॥१९॥