णाणस्स दंसणस्स य, आवरणं वेयणीयमोहणियं ।
आउगणामं गोदंतरायमिदि पढिदमिदि सिद्धं ॥20॥
अन्वयार्थ : [णाणस्स दंसणस्स य आवरणं] ज्ञानावरण, दर्शनावरण [वेयणीयमोहणियं] वेदनीय, मोहनीय, [आउगणामं] आयु, नाम, [गोदंतरायमिदि] गोत्र और अन्तराय - इस प्रकार जो - [पढिदमिदि सिद्धं] पाठ का क्रम है वह पहले पाठ की तरह ही सिद्ध हुआ ॥२०॥