+ आठों कर्मों के स्वभाव का उदाहरण -
पडपडिहारसिमज्‍जा-हलिचित्तकुलालभंडयारीणं ।
जह एदेसिं भावा, तहवि य कम्मा मुणेयव्‍वा ॥21॥
अन्वयार्थ : [पड] पट (देवता के मुख पर पड़ा वस्त्र), [पडिहार] प्रतीहारी (राजद्वार पर बैठा हुआ द्वारपाल), [असि]-असि (शहद लपेटी तलवार की धार), [मज्‍जा] शराब, [हलि] काठ का यंत्र--खोड़ा, [चित्त] चित्रकार, [कुलाल] कुंभकार (कुम्हार), [भंडयारीणं] भंडारी (खजांची) [जह एदेसिं भावा] इन आठों के जैसे-जैसे अपने-अपने कार्य करने के भाव होते हैं [तहवि य कम्मा मुणेयव्‍वा] उसी तरह क्रम से कर्मों के भी स्वभाव समझना ॥२१॥