+ स्त्यान-त्रिक का स्वभाव -
थीणुदयेणुट्ठविदे, सोवदि कम्मं करेदि जप्पदि य ।
णिद्दाणिद्‌दुदयेण य, ण दिट्ठिमुग्घाडिदुं सक्‍को ॥23॥
अन्वयार्थ : [थीणुदयेणुट्ठविदे] स्त्यानगृद्धि के उदय में [सोवदि कम्मं करेदि जप्पदि य] सोता हुआ भी काम कर लेता है, बोलता है [णिद्दाणिद्‌दुदयेण य] और निद्रा-निद्रा के उदय में [ण दिट्ठिमुग्घाडिदुं सक्‍को] आँख खोलने में समर्थ नहीं होता ॥२३॥