पयलापयलुदयेण य, वहेदि लाला चलंति अंगाइं ।
णिद्दुदये गच्छंतो, ठाइ पुणो वइसइ पडेइ ॥24॥
अन्वयार्थ : [पयलापयलुदयेण य] प्रचलाप्रचला के उदय में [वहेदि लाला चलंति अंगाइं] मुख से लार बहती है, हाथ-पैर आदि अंग चलरूप होते हैं [णिद्दुदये] निद्रा के उदय में [गच्छंतो ठाइ पुणो वइसइ पडेइ] चलता हुआ खड़ा हो जाता है, खड़ा हुआ बैठ जाता है या गिर पड़ता है ॥२४॥