पयलुदयेण य जीवो, ईसुम्मीलिय सुवेइ सुत्तोवि ।
ईसं ईसं जाणदि, मुहुं मुहुं सोवदे मंदं ॥25॥
अन्वयार्थ : [पयलुदयेण य जीवो] प्रचला के उदय में जीव [ईसुम्मीलिय सुवेइ सुत्तोवि] थोड़े नेत्रों को उघाढकर सोता है [ईसं ईसं जाणदि] थोड़ा-थोड़ा जानता है, [मुहुं मुहुं सोवदे मंदं] कभी जागता है कभी सोता है ॥२५॥