जंतेण कोद्दवं वा, पढमुवसमसम्मभावजंतेण ।
मिच्छं दव्‍वं तु तिधा, असंखगुणहीणदव्‍वकमा ॥26॥
अन्वयार्थ : [जंतेण कोद्दवं वा] घटी यंत्र द्वारा कौदों के (तंदुल, कण/पत्थर, तुष/छिलका ये तीन अवस्था को प्राप्त हो जाते हैं) समान [पढमुवसमसम्मभावजंतेण] प्रथमोपशम सम्यक्त्व रूप भाव-यंत्र द्वारा [मिच्छं दव्‍वं तु तिधा] मिथ्यात्व प्रकृति का द्रव्य [असंखगुणहीणदव्‍वकमा] असंख्यात-असंख्यात गुणा हीन द्रव्य के अनुक्रम से तीन प्रकार का (मिथ्यात्व, सम्यग्मिथ्यात्व, सम्यक्त्व) हो जाता है ॥२६॥