+ उष्ण, आतप और उद्योत कर्म -
सेवट्टेण य गम्मइ, आदीदो चदुसु कप्पजुगलोत्ति ।
तत्तो दुजुगलजुगले, खीलियणारायणद्धोत्ति ॥29॥
णवगेविज्‍जाणुद्दिस-णुत्तरवासीसु जांति ते णियमा ।
तिदुगेगे संघडणे, णारायणमादिगे कमसो ॥30॥
सण्णी छस्संहडणो, वज्‍जदि मेघं तदो परं चावि ।
सेवट्टादीरहिदो, पणपणचदुरेगसंहडणो ॥31॥
अन्वयार्थ : [सेवट्टेण य गम्मइ] सृपाटिकासंहनन वाले जीव यदि देव गति में उत्पन्न हों तो [आदीदो चदुसु कप्पजुगलोत्ति] पहले सौधर्मयुगल से चौथे लांतवयुगल तक चार युगलों में उत्पन्न होते हैं । [तत्तो दुजुगलजुगले] फिर चौथे युगल के बाद दो-दो युगलों में क्रम से [खीलियणारायणद्धोत्ति] कीलित संहनन वाले और अर्द्धनाराच संहनन वाले जीव जन्म धारण करते हैं ॥२९॥
[तिदुगेगे संघडणे] तीसरे दूसरे और पहले संहनन [णारायणमादिगे कमसो] नाराच आदि तीन से जीव क्रम से [णवगेविज्‍ज] नवग्रैवेयक पर्यंत [अणुद्दिस] नव अनुदिश और [अणुत्तरवासीसु] अनुत्तर विमान पर्यंत [जांति ते णियमा] वे नियम से जन्म ले सकते हैं ॥३०॥
[सण्णी छस्संहडणो] छह संहनन वाले संज्ञी जीव [वज्‍जदि मेघं तदो परं चावि] यदि नरक में जन्म लेवें तो मेघा (तीसरे नरक) पर्यन्त जाते हैं ।
[सेवट्टादीरहिदो] सृपाटिका-संहनन रहित पाँच संहनन वाले अरिष्टा नामक पाँचवे नरक की पृथ्वी तक उपजते हैं । [पणपणचदुरेगसंहडणो] चार संहनन (अर्द्धनाराच पर्यंत) वाले मघवी (छठी पृथिवी) तक और वज्रऋषभनाराच-संहनन वाले माघवी (सातवीं पृथिवी) तक उत्पन्न होते हैं ॥३१॥

किस संहनन से मरकर किस गति तक उत्‍पन्न होना सम्‍भव है
संहननप्राप्तव्‍य स्‍वर्गप्राप्तव्‍य नरक
वज्रऋषभनाराचपंच अनुत्तर७ वें नरक
वज्रनाराचनव अनुदिश६ नरक तक
नाराचनव ग्रैवेयक तक
अर्धनाराचअच्‍युत तक
कीलितसहस्रार तक५ वें नरक तक
असंप्राप्तासृपाटिकासौधर्म से कापिष्‍ठ तक३ नरक तक
गो.क./मू./२९-३१/२४ और गो.क./जी.प्र./५४९/७२५/१४