अंतिमतिगसंघडणस्सुदओ पुण कम्मभूमिमहिलाणं ।
आदिमतिगसंहडणं, णत्थि त्ति जिणेहिं णिद्दिट्ठं ॥32॥
अन्वयार्थ : [कम्मभूमिमहिलाणं] कर्मभूमि की स्‍त्रि‍यों के [अंतिमतिगसंघडणस्सुदओ] अन्त के तीन (अर्द्धनाराचादि) संहननों का ही उदय होता है; [पुण] और [आदिमतिगसंहडणं] आदि के तीन (वज्रऋषभनाराचादि) संहनन [णत्थि त्ति जिणेहिं णिद्दिट्ठं] (कर्मभूमि की स्‍त्रि‍यों के) नहीं होते - ऐसा जिनेन्द्रदेव ने कहा है ॥३२॥