मूलुण्हपहा अग्गी, आदावो होदि उण्हसहियपहा ।
आइच्‍चे तेरिच्छे, उण्हूणपहा हु उज्‍जोओ ॥33॥
अन्वयार्थ : [मूलुण्हपहा अग्गी] अग्नि के मूल और प्रभा [आदावो होदि उण्हसहियपहा] दोनों ही उष्ण रहते हैं । इस कारण उसके स्पर्श नामकर्म के भेद उष्णस्पर्श नामकर्म का उदय जानना । [आइच्‍चे तेरिच्छे] जिसकी केवल प्रभा (किरणों का फैलाव) ही उष्ण हो उसको आतप कहते हैं । इस आतपनामकर्म का उदय सूर्य के बिम्ब (विमान) में उत्पन्न हुए बादरपर्याप्‍त पृथ्वीकायिक जीवों के होता है । [उण्हूणपहा हु उज्‍जोओ] उष्णता रहित प्रभा हो उसको नियम से उद्योत जानना ॥३३॥