+ बंध / उदय / सत्व योग्य प्रकृतियों की संख्या -
देहे अविणाभावी, बंधणसंघाद इदि अबंधुदया ।
वण्णचउक्‍केऽभिण्णे, गहिदे चत्तारि बंधुदये ॥34॥
अन्वयार्थ : शरीर नामकर्म के साथ अपना-अपना बंधन और अपना-अपना संघात; ये दोनों अविनाभावी हैं । अर्थात् ये दोनों शरीर के बिना नहीं हो सकते । इस कारण पाँच बंधन और पाँच संघात ये 10 प्रकृतियाँ बन्ध और उदय अवस्था में अभेद विवक्षा से जुदी नहीं गिनी जातीं, शरीर नामक प्रकृति में ही शामिल हो जाती हैं । वर्ण, गंध, रस, स्पर्श — इन चार में ही इनके बीस भेद शामिल हो जाते हैं । इस कारण अभेद की अपेक्षा से इनके भी बन्ध और उदय अवस्था में चार ही भेद माने हैं ॥३४॥