पंच णव दोण्णि छव्‍वीसमवि य चउरो कमेण सत्तट्ठी ।
दोण्णि य पंच य भणिया, एदाओ बंधपयडीओ ॥35॥
अन्वयार्थ : ज्ञानावरण की 5, दर्शनावरण की 9, वेदनीय की 2, मोहनीय की 26, आयुकर्म की 4, नामकर्म की 67, गोत्रकर्म की 2, अंतरायकर्म की 5 — ये सब बंध होने योग्य प्रकृतियाँ हैं क्योंकि मोहनीय में सम्यग्मिथ्यात्व और सम्‍यक्‍त्‍व प्रकृति बन्ध में नहीं है यह पहले कह चुके हैं ।
नामकर्म में पहले गाथा में 10+16=26 प्रकृतियाँ अभेद विवक्षा से बंध अवस्‍था में नहीं है ऐसा कह आये हैं । सो 93 में से 26 कम करने पर (93−26=67) 67 बाकी रह जाती हैं ॥ 35 ॥