
दव्वे कम्मं दुविहं, आगमणोआगमंति तप्पढमं ।
कम्मागमपरिजाणग-जीवो उवजोगपरिहीणो ॥54॥
अन्वयार्थ : द्रव्यनिक्षेपरूप कर्म दो प्रकार है -- एक आगमद्रव्यकर्म, दूसरा नोआगमद्रव्यकर्म । इन दोनों में जो कर्म का स्वरूप कहने वाले शास्त्र का जानने वाला परंतु वर्तमान काल में उस शास्त्र में उपयोग नहीं रखने वाला जीव है वह पहला आगमद्रव्यकर्म है ॥५४॥