
भूदं तु चुदं चइदं, चदंति तेधा चुदं सपाकेण ।
पडिदं कदलीघाद-परिच्चागेणूणयं होदि ॥56॥
अन्वयार्थ : भूतज्ञायकशरीर च्युत, च्यावित, त्यक्त के भेद से तीन तरह का है । उनमें जो दूसरे किसी कारण के बिना केवल आयु के पूर्ण होने पर नष्ट हो जाये वह च्युतशरीर है । यह च्युतशरीर कदलीघात और संन्यास इन दोनों अवस्थाओं से रहित होता है ॥५६॥