विसवेयणरत्तक्खय-भयसत्थग्गहणसंकिलेसेहिं ।
उस्सासाहाराणं, णिरोहदो छिज्‍जदे आऊ ॥57॥
अन्वयार्थ : विष भक्षण से अथवा विष वाले जीवों के काटने से, रक्तक्षय अर्थात् रक्त जिसमें सूखता जाता है ऐसे रोग से अथवा धातुक्षय से, भय से, शस्त्रों के घात से, संक्‍लेश अर्थात् शरीर, वचन तथा मन द्वारा आत्मा को अधिक पीड़ा पहुँचाने वाली क्रिया होने से, श्वासोच्छ्‌वास के रुक जाने से और आहार नहीं करने से आयु के छिदने को कदलीघात मरण अथवा अकालमृत्यु कहते हैं ॥५७॥