
अप्पोवयारवेक्खं, परोवयारूणमिंगिणीमरणं ।
सपरोवयारहीणं, मरणं पाओवगमणमिदि ॥61॥
अन्वयार्थ : अपने शरीर की टहल आप ही अपने अंगों से करे, किसी दूसरे से रोगादि का उपचार न करावे, ऐसे विधान से जो संन्यास धारण कर मरण करे उस मरण को इंगिनीमरण संन्यास कहते हैं ।
जिसमें अपने तथा दूसरे के भी उपचार से रहित हो अर्थात् अपनी टहल न तो आप करे, न दूसरे से ही करावे ऐसे संन्यासमरण को प्रायोपगमन संन्यास कहते हैं ॥६१॥