भवियंति भवियकाले, कम्मागमजाणगो स जो जीवो ।
जाणुगसरीरभवियं, एवं होदित्ति णिद्दिट्ठं ॥62॥
अन्वयार्थ :
जो कर्म के स्वरूप को कहने वाले शास्त्र का जानने वाला आगे होगा वह जीव ज्ञायकशरीर भावी है, ऐसा जिनेन्द्रदेव ने कहा है ॥६२॥