
तव्वदिरित्तं दुविहं, कम्मं णोकम्ममिदि तहिं कम्मं ।
कम्मसरूवेणागय, कम्मं दव्वं हवे णियमा ॥63॥
अन्वयार्थ : तद्व्यतिरिक्त नोआगमद्रव्यकर्म कर्म और नोकर्म के भेद से दो प्रकार है ।
ज्ञानावरणादि मूलप्रकृतिरूप अथवा उनके भेद मतिज्ञानावरणादि उत्तरप्रकृतिस्वरूप परिणमता हुआ जो कार्मणवर्गणारूप पुद्गल द्रव्य वह कर्म-तद्व्यतिरिक्त नोआगमद्रव्यकर्म है ऐसा नियम से जानना ॥६३॥