
कम्मागमपरिजाणग-जीवो कम्मागमम्हि उवजुत्तो ।
भावागमकम्मोत्ति य, तस्स य सण्णा हवे णियमा ॥65॥
अन्वयार्थ : जो जीव कर्मस्वरूप के कहने वाले आगम का जानने वाला और वर्तमान समय में उसी शास्त्र के चिन्तवन रूप उपयोगसहित हो उस जीव का नाम भावागमकर्म अथवा आगमभावकर्म निश्चय से कहा जाता है ॥६५॥