णोआगमभावो पुण, कम्मफलं भुंजमाणगो जीवो ।
इदि सामण्‍णं कम्मं, चउव्‍वि‍हं होदि णियमेण ॥66॥
अन्वयार्थ : कर्म के फल को भोगने वाला जो जीव वह नोआगम भावकर्म है । इस तरह निक्षेपों की अपेक्षा सामान्य कर्म चार प्रकार का नियम से जानना ॥६६॥