मूलुत्तरपयडीणं, णामादि चउव्‍व‍िहं हवे सुगमं ।
वज्‍जि‍त्ता णोकम्मं, णोआगमभावकम्मं च ॥68॥
अन्वयार्थ : मूलप्रकृति तथा उत्तरप्रकृतियों के नामादिक चार भेदों का स्वरूप समझना सरल है, परंतु उनमें द्रव्य तथा भावनिक्षेप के भेदों में से नोकर्म तथा नोआगमभावकर्म का स्वरूप समझना कठिन है ॥६८॥